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टूटी हुई मुरली (Tooti Hui Murali)

पहाड़ों की गोद में बसा एक छोटा सा गांव था, जहाँ रहती थी मीरा। मीरा, एक हंसमुख और प्रतिभावान लड़की थी। उसकी सबसे बड़ी ख़ासियत थी - उसकी मुरली। मीरा की मुरली से निकलने वाले सुर, पहाड़ों को भी झुमा देते थे। पेड़-पौधे थिरक उठते थे और पक्षी मीठे स्वरों में साथ गाते थे। गाँव वाले मीरा को उनकी मीठी धुनों के लिए जानते थे।

एक शाम, मीरा जंगल में मुरली बजा रही थी। तभी अचानक उसकी मुरली किसी पेड़ की टहनी से जा टकराई और टूट गई। मीरा के लिए ये किसी सदमे से कम नहीं था। उसकी आँखों में आंसू आ गए। वो मुरली जिसे वो अपनी आत्मा मानती थी, वो टूट चुकी थी। वो निराश होकर घर वापस लौटी।

उस रात, मीरा को नींद नहीं आई। टूटी हुई मुरली का ख्याल उसे बार-बार सता रहा था। सुबह होते ही वो उदास मन से नदी के किनारे चली गई। नदी के किनारे बैठकर वो टूटी हुई मुरली को देख रही थी, तभी उसे एक बूढ़ा व्यक्ति दिखाई दिया। वो धीरे-धीरे मीरा के पास आया और पूछा, "बेटी, इतनी सुबह उदास क्यों हो?"

मीरा ने बूढ़े व्यक्ति को अपनी टूटी हुई मुरली के बारे में बताया और ये भी बताया कि वो अब कैसे मुरली नहीं बजा पाएगी। बूढ़ा व्यक्ति ध्यान से सुनता रहा और फिर बोला, "बेटी, टूटी हुई मुरली का मतलब ये नहीं है कि तुम्हारी संगीत खत्म हो गई है। संगीत तो तुम्हारे दिल में है, तुम्हारी उंगलियों में है।"

मीरा को बूढ़े व्यक्ति की बात समझ नहीं आई। उसने कहा, "लेकिन बिना मुरली के मैं कैसे संगीत बनाऊंगी?"

बूढ़ा व्यक्ति मुस्कुराया और बोला, "प्रकृति ही सबसे बड़ा संगीत है। पेड़ों की सरसराहत, पंछियों की चहचाहट, नदी का बहता पानी - ये सब भी संगीत हैं। तुम इन्हें सुनो और इनसे सीखो।"

बूढ़े व्यक्ति की बातों ने मीरा को सोचने पर मजबूर कर दिया। उसने देखा कि कैसे हवा पत्तियों से सरसराहट कर रही है और पंछी आपस में मीठे स्वरों में बातें कर रहे हैं। नदी का पानी भी एक लय में बह रहा था। ये सब मिलकर एक अद्भुत संगीत रच रहे थे।

अचानक, मीरा को एक विचार आया। उसने टूटी हुई मुरली को अपने हाथ में लिया और उसकी टूटी हुई धार से हवा में एक स्वर निकाला। फिर उसने दूसरी टूटी हुई धार से एक और स्वर निकाला। धीरे-धीरे, उसने हवा में ही अलग-अलग स्वर निकालने शुरू कर दिए। वो पेड़ों की सरसराहट, पंछियों की चहचाहट और नदी के बहते पानी की आवाज़ की नकल कर रही थी।

कुछ देर में ही, मीरा प्रकृति की आवाज़ों को अपनी आवाज़ से मिलाकर एक नया ही संगीत रच रही थी। वो बिना मुरली के ही इतना मधुर संगीत बना पा रही थी कि पेड़-पौधे थिरक उठे और पंछी उसकी संगत करने लगे।

शाम ढलने पर, मीरा खुशी से घर वापस लौटी। उसने सीखा था कि संगीत के लिए किसी वाद्य यंत्र की जरूरत नहीं होती। संगीत तो हमारे आसपास हर जगह मौजूद है, बस उसे सुनने और समझने की ज़रूरत होती है।

दूसरे दिन, मीरा ने गाँव वालों को बुलाया और उन्हें बिना मुरली के बनाया हुआ अपना नया संगीत सुनाया। गाँव वाले मीरा के इस नए संगीत से मंत्रमुग्ध हो गए। उन्हें एहसास हुआ

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