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पहाड़ जैसा प्यार (Pahad Jaisa Pyaar) A Story For Father

अमन, एक 12 साल का लड़का था। पढ़ाई में तेज और क्रिकेट का दीवाना। क्रिकेट का बल्ला उसके हाथों में जादू की तरह लगता था। स्कूल की टीम में वह सबसे आगे रहता था, मगर एक चीज़ अमन को हमेशा परेशान करती थी - उसके पिताजी, श्रीकृष्ण।

श्रीकृष्ण एक साधारण से दुकानदार थे। उनकी दुकान गाँव के बाहर, एक सुनसान रास्ते पर थी। दुकानदारी के अलावा, वह खेतों में भी मेहनत करते थे। अमन को लगता था कि उनके पिता गाँव के बाकी बच्चों के पिताओं की तरह स्मार्ट और पढ़े-लिखे नहीं हैं। वह यह भी सोचता था कि श्रीकृष्ण उसकी क्रिकेट की प्रतिभा को नहीं समझते।

एक दिन, स्कूल में क्रिकेट मैच था। अमन को उम्मीद थी कि उसके पिता उसे खेलते हुए देखेंगे। मगर पूरा दिन बीत गया, श्रीकृष्ण नहीं आए। शाम को निराश होकर अमन घर लौटा। घर पहुँचते ही उसकी माँ ने बताया कि दुकान में चोरी हो गई है और श्रीकृष्ण सारी रात पुलिस स्टेशन में थे।

अमन को बहुत गुस्सा आया। उसने सोचा, "पुलिस स्टेशन में क्या फँसे रहे? मेरे मैच के लिए तो आ सकते थे!" गुस्से में कमरे में बंद हो गया। थोड़ी देर बाद, दरवाज़ा खुला और श्रीकृष्ण अंदर आए। उनके चेहरे पर थकान साफ झलक रही थी।

अमन ने मुँह फुलाए रखा। श्रीकृष्ण ने धीरे से कहा, "मैच कैसा रहा, बेटा?"

अमन ने बिना जवाब दिए कहा, "आप आए ही नहीं देखने।"

श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले, "मैं देखने आया था, बेटा। मगर दुकान में चोरी हो गई थी, इसलिए पुलिस स्टेशन जाना पड़ा।"

अमन चुप रहा। श्रीकृष्ण ने जेब से एक अख़बार निकाला। उसमें अमन के स्कूल के मैच की खबर छपी थी। खबर के नीचे अमन की बल्लेबाजी की तारीफ लिखी हुई थी। श्रीकृष्ण ने वह खबर अमन को पढ़कर सुनाई और गर्व से कहा, "तू कमाल का बल्ला चलाता है, बेटा! गाँव का नाम रोशन करेगा!"

अमन को शर्म हुई। उसे महसूस हुआ कि वह अपने पिता की मेहनत और प्यार को नहीं समझ पाया। उस रात, अमन ने श्रीकृष्ण से माफी मांगी और बताया कि वह कितना चाहता था कि वह उसे खेलते हुए देखें।

श्रीकृष्ण ने उसे गले लगा लिया और कहा, "बेटा, क्रिकेट तेरा सपना है, तो उसे पूरा ज़रूर करना। मगर ज़िंदगी में कभी ये मत भूलना कि तेरे पिता का प्यार पहाड़ जैसा है, जो हमेशा तेरे साथ खड़ा रहेगा।"

अगले मैच के दिन, श्रीकृष्ण दुकान बंद करके, दूर से ही अमन का मैच देख रहे थे। अमन ने उन्हें दूर खड़े देखा, तो उसे खुशी हुई। उसने शानदार बल्लेबाजी की और अपनी टीम को जीत दिलाई।

मैच के बाद, खुशी से झूमता हुआ अमन श्रीकृष्ण के पास दौड़ा। श्रीकृष्ण ने उसे गले लगा लिया और कहा, "मैंने तुझे खेलते हुए देखा, बेटा। तू बहुत अच्छा खेला!"

उस दिन अमन को समझ आया कि पिता का प्यार ज़रूरी नहीं है कि दिखावटी हो। वह तो पहाड़ की तरह होता है, जो चुपचाप खड़ा रहता है, मगर हर मुश्किल घड़ी में हमें सहारा देता है। अमन ने ठान लिया कि वह अपने पिता का सपना पूरा ज़रूर करेगा और उन्हें गर्व महसूस कराएगा।

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